Uttarakhand
देहरादून : देश के प्रमुख अनुसंधान केंद्र वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने पहाड़ों की रानी मसूरी पर मंडरा रहे भूस्खलन के खतरे को लेकर बड़ा खुलासा किया है ।
पृथ्वी प्रणाली विज्ञान पत्रिका जनरल ऑफ अर्थ सिस्टम साइंस में प्रकाशित लेख में इस अध्ययन को लेकर यह बताया गया है कि यह अध्ययन वैज्ञानिकों ने आधुनिक तकनीकों की मदद से किया है. इस अध्ययन में भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस), उपग्रह चित्र, और आँकड़ों पर आधारित विश्लेषण (सांख्यिकीय विधियां) का उपयोग कर भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्र तैयार किया गया है ।
इस अध्ययन की प्रमुख बातों पर गौर करे तो इसमें यह साफ साफ बताया गया है कि मसूरी और उसके आसपास का 15 प्रतिशत क्षेत्र अत्यधिक खतरे (उच्च जोखिम) में है। 29 प्रतिशत क्षेत्र मध्यम खतरे वाले हिस्से में आता है. 56 प्रतिशत क्षेत्र कम या बहुत कम खतरे की श्रेणी में है ।
मसूरी के इन क्षेत्रों को सबसे अधिक खतरा :-
अध्ययन में मसूरी के जिन इलाकों को सबसे संवेदनशील बताया गया है, उनमें बाटाघाट, जॉर्ज एवरेस्ट, केम्पटी फॉल, खट्टा पानी, लाइब्रेरी रोड, झडीपानी, गलोगीधार और हाथीपांव शामिल हैं ।
बता दें कि वैज्ञानिकों के अनुसार यह अध्ययन मसूरी ही नहीं, बल्कि पूरे हिमालय क्षेत्र के लिए चेतावनी की घंटी है । जहां तक बात मसूरी की है तो मसूरी की ढलानें क्रोल चूना-पत्थर नामक चट्टानों से बनी हैं, जो बेहद भंगुर (फटी हुई और कमजोर) हैं. इन ढलानों का झुकाव कई जगहों पर 60 डिग्री से भी अधिक है. जिससे थोड़ी सी बारिश या भूकंपीय हलचल से भी मिट्टी खिसक जाती है । वहीं इस खतरे का कारण केवल प्राकृतिक नहीं है । बल्कि बिना योजना के निर्माण, सड़क कटाई और जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने ढलानों को अस्थिर बना दिया है ।
